प्रकृति की सिख: धैर्य और निरंतरता का संदेश, Nature's lesson: A message of patience and persistence

Inspire Mantra

कहानी: "प्रकृति की सिख"
गाँव के बाहर एक छोटे से जंगल के पास एक छोटा सा झरना बहता था। झरने का पानी साफ और ठंडा था, जो हर किसी को अपनी ओर खींचता था। पास के खेतों में काम करने वाले किसान अक्सर अपने हल को लेकर वहाँ बैठते और झरने के पानी से अपनी प्यास बुझाते। उन किसानों में एक किसान, रामू, जो हर सुबह अपने खेतों से काम खत्म करके झरने के पास बैठता और प्रकृति के चमत्कार को महसूस करता।
रामू का मानना था कि प्रकृति किसी गुरु से कम नहीं है। वो कहते थे, "प्रकृति में हर चीज़ एक सिख देती है, अगर हम उसे समझ सकें।"
एक दिन, रामू ने देखा कि झरने के पास एक बडी सी चट्टान पड़ी हुई थी, और उस चट्टान के ऊपर से पानी बह रहा था। कुछ दिन बाद, उसने ध्यान दिया कि पानी धीरे-धीरे चट्टान के नीचे की ओर भी बहने लगा है। उसने सोचा, "कितनी धैर्य से ये पानी चट्टान को घिस रहा है और उसे भी आकार दे रहा है।" उसने तय किया कि आज वह उसी चट्टान के पास बैठकर प्रकृति के इस अद्भुत रूप को समझेगा।
वह दिनभर चट्टान के पास बैठा रहा और धीरे-धीरे उसे समझ आया कि प्रकृति हमें सिखाती है कि धैर्य और लगातार मेहनत से हम किसी भी मुश्किल को पार कर सकते हैं। चट्टान के कठोर होने के बावजूद, पानी उसे घिसता और उसका रूप बदलता चला जा रहा था। यह उसी तरह था जैसे हमारे जीवन में समय के साथ हम कठिनाईयों को पार करते जाते हैं, अगर हम निरंतर प्रयास करते रहें।
रामू को अब यह समझ में आया कि प्रकृति के सभी तत्व हमसे कुछ न कुछ सिखाते हैं। चिड़ियाँ आकर अपना गीत गाती हैं, फूल अपनी खुशबू से वातावरण को महकाते हैं, और सूर्य हर दिन नयी उम्मीद के साथ उगता है। हम भी, अगर प्रकृति से सीख लें, तो जीवन को और बेहतर बना सकते हैं।
उस दिन के बाद, रामू हमेशा अपने जीवन में धैर्य और निरंतरता को महत्व देने लगा। वो जब भी किसी समस्या का सामना करता, तो उसे याद आता कि "चट्टान को घिसता हुआ पानी भी कभी हार नहीं मानता।
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