एक कप चाय और रिश्तों की गर्माहट - एक कहानी
कहानी: एक कप चाय और रिश्ते
गाँव का शांत सा माहौल था। सुबह की हल्की धूप खेतों को सुनहरा बना रही थी। रामू काका, जो अब सत्तर के पार थे, रोज़ की तरह अपने छोटे से आँगन में बैठकर चाय पी रहे थे। पास में पुरानी सी कुर्सी खाली थी — वो कुर्सी जो कभी उनके सबसे अच्छे दोस्त श्यामू काका की होती थी। श्यामू काका अब इस दुनिया में नहीं थे, पर उनकी यादें हर सुबह चाय के साथ आ जाती थीं। रामू काका की आँखें उस कुर्सी को देख-देख कर भर आती थीं।
आज उनका पोता रोहन, जो शहर से कुछ दिन की छुट्टी पर आया था, पास ही बैठा था।
“दादा जी, आप हर रोज़ उस खाली कुर्सी की तरफ देखते हैं… ऐसा क्यों?” रोहन ने पूछा।
रामू काका मुस्कराए, फिर बोले,
“बेटा, रिश्ते सिर्फ खून के नहीं होते। कुछ लोग अपनेपन की ऐसी छाप छोड़ जाते हैं कि उनके बिना सब अधूरा लगता है। श्यामू मेरा दोस्त ही नहीं, मेरा भाई था। हम साथ खेले, साथ जवान हुए, और दुख-सुख में हमेशा साथ रहे। अब वो नहीं है, पर उसका साथ, उसकी बातें, उसकी हँसी… सब मेरे साथ हैं।”
रोहन चुपचाप सुनता रहा। फिर धीरे से बोला,
“शायद यही असली रिश्ते होते हैं — जो वक़्त और मौत से परे होते हैं।”
रामू काका ने सिर हिलाया और कहा,
“हाँ बेटा, रिश्तों की अहमियत पैसे, दौलत या बड़े-बड़े घरों में नहीं होती। वो तो एक कप चाय में, एक साथ हँसने में, और एक-दूसरे के दुःख को समझने में होती है।”
उस दिन रोहन ने पहली बार रिश्तों की असली कीमत समझी।
सीख:
रिश्ते शब्दों के मोहताज नहीं होते। उनके लिए समय चाहिए, समझ चाहिए और थोड़ा सा दिल। जब हम किसी के लिए वक़्त निकालते हैं, तब ही रिश्ते बनते और सँवरते हैं।
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